तुम चलो हम चलें ,फिर मिले कब मिले ! वक्त की कतार में, भ्रम सी मझधार में हम चलें कब चलें ,तुम मिलो हम मिले | बात है यह राज की, कब चलें और कब जुड़े? वक्त जो गुजर गया, स्वप्न जो बिखर गया, टूटे हैं भ्रम जो, वक्त में मिलन हुआ| रात सी जो बात थी, बात की न बात थी, न फिर मिले ,न फिर जुड़े | वक्त की मार से, न तुम मिले ना हम मिले मेघ भी गरज उठे, वक्त भी मचल उठा , जब ना तुम हमसे मिले यह विचार भी अनाचार था, जब वक्त भी शर्मसार था, हर कदम हम चले, ना तुम मिले ना हम मिले, हां,यह भ्रम था अब जो ना रहा, कि कब मिले और कब जुड़े, हम मिले तुम मिले, तुम मिलो हम मिले !!!