तू वक्त की दीवार है
तू खुदा का गुलजार है
हर पल हम जी रहे,
तू ना समझ ये तेरे लिए इजहार है
ये शाम की बहार है
ये रात में शुमार है
तु और मैं ,हम ना हुए तो क्या हुआ
मुझे तो महफिलों की जाम से एतबार है
हां यह मेरी नफरतों का गुब्बार है
मैं टूट ना सकूं
इसलिए मदिरा ही मेरा दिलदार है
हां मुझे तन्हाइयों का सहार है
मुझे नफरतों से प्यार है
फिर भी यह वक्त की ही मार है
हां मुझे तुमसे ही एतबार है
मुझे तुझ पे ही इजहार है
Comments
Post a Comment