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जनता इतिहास और सत्ता

सैकड़ों वर्षों से विश्वभर मे सत्ता करने की ताकत कभी भी सर्वसाधारण जनता से नहीं आई थी| गणतंत्र की अवधारणा का प्रादुर्भाव सहस्त्र वर्षों पुराना है | परंतु उसकी सामान्य लोगों तक पहुँच नहीं थी| हजारों , लाखों या करोड़ों की भीड़ केवल राजा या प्रधान की सेवा हेतु समझी जाती थी| राज्य की शक्तियों का केंद्र केवल मुट्ठीभर लोगों या कुछ विशेष समुदायों तक सीमित रहा था | हम भारत के निकट इतिहास को देखे तो इसकी पुष्टि हो जाती है |गणतांत्रिक भारत के गत 75 वर्षों से पहले तक किसी भी राजनैतिक इकाई की सम्पूर्ण शक्ति किसी एक व्यक्ति में निहित होती थी| जब विभाजन का प्रस्ताव लंदन मे पारित हुआ तो उसके महत्वपूर्ण बिन्दु थे(1)ब्रिटिश द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित क्षेत्रों का धर्म आधारित बंटवारा (2)शेष क्षेत्रों के सैकड़ों राजा स्वयं यह निर्णय करें की उन्हे स्वतंत्र रहना है या भारत या पाकिस्तान मे विलयित होना है | समानता ,बंधुता ,मानवता और न्याय की ड़ींगे हाँकने वाले अंग्रेज ,राजाओ द्वारा शासित क्षेत्रों की जनता के अधिकारों को अपनी नीति में शामिल नहीं कर सके |करते भी क्यूँ “अधिकार” शब्द सामान्य जनता का तक तक था ह
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हम मिले तुम मिले

 तुम चलो हम चलें ,फिर मिले कब मिले ! वक्त की कतार में, भ्रम सी मझधार में हम चलें कब चलें ,तुम मिलो हम मिले | बात है यह राज की, कब चलें और कब जुड़े? वक्त जो गुजर गया, स्वप्न जो बिखर गया, टूटे हैं भ्रम जो, वक्त में मिलन हुआ| रात सी जो बात थी, बात की न बात थी, न फिर मिले ,न फिर जुड़े | वक्त की मार से, न तुम मिले ना हम मिले मेघ भी गरज उठे, वक्त भी मचल उठा , जब ना तुम हमसे मिले यह विचार भी अनाचार था, जब वक्त भी शर्मसार था,  हर कदम हम चले, ना तुम मिले ना हम मिले, हां,यह भ्रम था अब जो ना रहा, कि कब मिले और कब जुड़े, हम मिले तुम मिले, तुम मिलो हम मिले !!!

Our Republic , Our Nation

 This Republic Day, we should thank our nation and its people. This nation or civilization after a long and tireless struggle got a reward of self-rule. In this Republic, we as all got a status of equality among all. Internal differences and suppression in amalgamation with external colonizers made us a depressed civilization.  But We as India in the words of our first Prime minister " Indian never lost her quest for utmost wisdom". India or Bharat with her long historical baggage to carry. But the Republic of India is special and important among all political systems. It gave us a sense of individual existence.  Only Republic of India got all of us a unifying factor. We, people of India, top to bottom, are equals before the law. This equality should not be taken for granted. No one granted to us.  Our colonial master had this system, but, hypocritically they never gave a bit of share to us. This proves that the mere existence of some idea or system doesn't mean access to

Soul and Reason

  Soul and Reason are two distinct spiritual entities. The soul is a concept of continuous involvement and improvement. When someone thinks about the emergence of the soul, the very first picture that comes to mind is of a fearful, non-visible creature with ill intentions. Some others may conceptualize the soul as part of the ultimate truth. I relate the truth to the Supreme authority of the most powerful. When people imagine the soul as a moving physical entity but with no shape and size, it becomes problematic and concerning.  Many traditions around the world believe in different ultimate truths but each of them has its own interpretation about the reasoning of soul and spirit.  Supreme authority is Supreme, but in what sense? Does it have all the right and power to not only control or manipulate certain incidents but also ensures continuous regular working of the entire spiritual universe? When a human mind imagines any ultimate power, the first picture.   Probably will be like a hu

रात का दम्भ

ये दम्भ है , रात का काली , भयानक , अंधकार वाली | मैं कर दूँ , निस्तब्ध काल को , मायूसी है तांडव सी , मरणशय्या तैयार है || है क्यूँ तैयार काल , निगलने को चलता है , समय का चक्र निरंकुश | पहर गुजरता नहीं , डराती है आधी रात , हाँ , मैं रात हूँ , मौत वाली || वर्तमान गुजर रहा , भूत चला गया , मैं अभिमान हूँ , भविष्य के आने का | हरेक को तलाश है , मेरे आकर जाने की मेरा स्वरूप , तैनात हूँ ,वक्त को बदलने को || मैं ताक़त हूँ , सत्ता बदलने की , अन्याय की , अविश्वास की | मै रास्ता हूँ , पथरीला , कंटीला , चुभता हूँ मौत सा |

तू वक्त की दीवार है Tu Vakat ki Diwaar hai

तू वक्त की दीवार है तू खुदा का गुलजार है हर पल हम जी रहे, तू ना समझ ये तेरे लिए इजहार है ये शाम की बहार है ये रात में शुमार है तु और मैं ,हम ना हुए तो क्या हुआ मुझे तो महफिलों की जाम से एतबार है हां यह मेरी नफरतों का गुब्बार है मैं टूट ना सकूं इसलिए मदिरा ही मेरा दिलदार है हां मुझे तन्हाइयों का सहार है मुझे नफरतों से प्यार है फिर भी यह वक्त की ही मार है हां मुझे तुमसे ही एतबार है  मुझे तुझ पे ही इजहार है  

तुम एक बार आओ तो सही Tum Ek Baar aao to Shi

  तुम एक बार आओ तो सही , हाँ तुम एक बार आओ तो सही , रूठी ही सही हमसे नज़रें मिलाओ तो सही || हम मिले , मिलकर मिले , पर मुझे मुझसे मिलाओ तो सही , तुम एक बार आओ तो सही || बातें रुखी ही सही , यादें बिखरी ही सही , पर लम्हे हमारी बिछडन के मुझे सुनाओ तो सही || तुम एक बार आओ तो सही || तेरा मुझसे मिलना , मिलकर बिछड़ना , एक ख्वाब ही तो था , ख्वाब मेरा टुटा ही सही , मुझे वो ख्वाब फिर से दिखाओ तो सही|| तुम एक बार आओ तो सही || जा रहा वक्त गुजरता , यादे छूट रही है , ना जाऊ मै भूल मुझे ,मुझे खुद की याद दिलाओ तो सही | तुम एक बार आओ तो सही | मेरे कलम की स्याही सूख रही है , मेरी शायरी रूठने को है, जाऊँ ना मैं , लिखना भूल तुझे , रचना मेरी तुम ही बन जाओ तो सही|| वक्त के झरोखे से शक्ल अपनी दिखाओ से सही , तुम एक बार आओ तो सही | कितनी नफ़रत होगी , मन में तेरे , मुझे मालूम ही नही , मोहब्बत ना सही , नफरतों की खातिर , मुझे मेरी धड़कनो से मिलाओ तो सही || तुम एक बार आओ तो सही | मुझे मुझसे मिलाओ तो सही. जाहिर किया तो था नही , हमने ये राज अपनी सांसों से भी , हुई बदनाम जो गलियाँ ये , हिस्सेदार उसके तुम भी हो , ह